बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - चतुर्थ प्रश्नपत्र - अनुसंधान पद्धति एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - चतुर्थ प्रश्नपत्र - अनुसंधान पद्धतिसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - चतुर्थ प्रश्नपत्र - अनुसंधान पद्धति
प्रश्न- समस्या का परिभाषीकरण कीजिए तथा समस्या के तत्वों का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर -
डब्लू. एस. मुनरो के अनुसार “समस्या को परिभाषित करने का अर्थ है कि उसे विस्तृत रूप से और ठीक प्रकार से सुनिश्चित बनाया जाए।"
अनुसन्धान के लिए समस्या के चुनाव और कथन के पश्चात् सबसे महत्वपूर्ण कार्य समस्या का परिभाषीकरण है। वास्तव में परिभाषीकरण से तात्पर्य अध्ययन की समस्या को चिन्तन द्वारा सम्पूर्ण समस्या क्षेत्र से अलग निकाल कर स्पष्ट करना है।
किसी समस्या के परिभाषीकरण के समय उसकी विस्तृत व्याख्या हेतु हमें निम्नांकित रेखाकृति में दी गई बातों का स्पष्टीकरण करना होगा -
समस्या के तत्वों का विश्लेषण - समस्या में निम्न तत्वों का विश्लेषण किया जाता है.
(1) समस्या का उसके तत्वों में विश्लेषण।
(2) अध्ययन सीमा का विश्लेषण।
(3) सम्बन्धित साहित्य का विश्लेषण।
(4) आँकड़ों के समाधान तथा प्राप्त करने के विधि।
(5) प्रत्यय निर्मित तथा अन्य शब्दों की व्याख्या।
(6) समस्या का महत्व तथा औचित्य।
(7) क्षेत्र का स्पष्टीकरण।
(8) समय शक्ति का निर्धारण।
समस्या का विश्लेषण एवं उसका परिभाषीकरण
समस्या का अन्तिम रूप से चयन हो जाने के बाद उसका कथन (Statement) किया जाता है अर्थात् अन्तिम रूप से उसको लिखा जाता है तथा इस कथन के बाद समस्या का गहराई से विश्लेषण ( analysis) अर्थात् परिभाषीकरण (define ) एवं वर्णन (describe) किया जाता है। कई कारणों से ऐसा किया जाना जरूरी है। समस्या का विश्लेषण एवं परिभाषीकरण शोध की दिशाओं को सिद्ध करता है तथा इस बात की ओर संकेत करता है कि उस अनुसन्धान में किस प्रकार के चर सन्निहित हैं, उनका मापन किस प्रकार किया जाएगा तथा अनुसन्धान की प्रक्रिया क्या होगी। इस प्रकार अनुसन्धान कार्य का पूरा मानचित्र सिद्ध एवं निश्चित हो जाता है। भिटनी (1964, पृ. 80-81) के अनुसार समस्या के परिभाषीकरण से अर्थ होता है, "समस्या को एक परिधि के भीतर सीमित करना, उसे उन मिलते-जुलते प्रश्नों से भिन्न एवं अलग करना जो सम्बन्धित परिस्थितियों में पाए जाते हैं।" ऐसा करने से शोधकर्त्ता को स्पष्ट रूप से प्रारम्भ हो जाता है कि समस्या वास्तव में क्या है। प्रारम्भ में ही समस्या का इस प्रकार का विशिष्टीकरण एवं व्यावहारिक सीमांकन बहुत अधिक जरूरी होता है। इस संबंध में मुनरो एवं ऐंगिलहार्ट (1928 पृ. 14 ) का कथन विशेष महत्व का है। उनका कहना है कि समस्या के परिभाषीकरण का आशय है "उसका विस्तृत एवं सही-सही विशिष्टीकरण करना, प्रत्येक मुख्य एवं गौण प्रश्न जिसका उत्तर वांछनीय है, का स्पष्टीकरण करना तथा अनुसन्धान की सीमाओं का निर्धारण करना।" इसके लिए उनके अनुसार, यह जरूरी है कि जो अनुसन्धान पहले हो चुके हैं, उनकी समीक्षा की जाए ताकि यह निश्चित किया जा सके कि क्या करना है। कभी-कभी एक ऐसे शैक्षिक दृष्टिकोण अथवा शिक्षा - सिद्धान्त का विकास एवं निर्माण करना भी जरूरी हो सकता है जो प्रस्तावित अनुसन्धान को एक आधार प्रदान कर सके। इसके अन्तर्गत आधारभूत अवधारणाओं को भी स्पष्ट करना आवश्यक होता है।
साधारण भाषा में समस्या के परिभाषीकरण से अर्थ उसके विशिष्टीकरण एवं स्पष्टीकरण से ही होता है। उसका आधार समस्या का विश्लेषण एवं स्पष्ट वर्णन होता है। उसके अन्तर्गत निम्नलिखित कार्य आते हैं -
1. समस्यागत- अनुसन्धान कार्य के विस्तार (Scope) को सीमित करना - इसका आशय है कि समस्या का वर्णन इस प्रकार करना कि उससे जितने कार्य का ज्ञान होता है उतना कार्य शोधकर्त्ता की सामर्थ्य के भीतर हो। दूसरे शब्दों में, एक विस्तृत एवं व्यापक समस्या को काट-छाँटकर सीमित बनाना इसके अन्तर्गत आता है। उदाहरणार्थ, यदि समस्या है 'समस्यात्मक बालकों के व्यवहारों का अध्ययन करना', तो यह समस्या अत्याधिक अस्पष्ट विस्तृत एवं व्यापक है। इसके अन्तर्गत अनेक प्रकार के समस्यात्मक बालकों, व्यवहारों के अनेक प्रकार के कारणों, अध्ययन की कई विधियों, विविध स्थानों एवं विविध आयु के बालकों का अध्ययन आता है। इन सब अध्ययनों को पूरा करने में बरसों लग जायेंगे जो किसी भी शोधकर्त्ता के लिए संभव नहीं है। अतः समस्या को सीमित, संक्षिप्त एवं संकुचित करना जरूरी है। किस प्रकार के समस्यात्मक बालकों, किस आयु के, कौन से विशिष्ट कारणों आदि का अध्ययन किया जाएगा, इनका विनिश्चयन एवं स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाना जरूरी है। यही समस्या के परिभाषीकरण का अर्थ है। मौलिक अधिकार (पृ. 85) के अनुसार, यदि समस्या स्पष्ट नहीं है तो आगे चलकर बहुत-सी समस्याएँ पैदा हो जाती हैं तथा परिणामों के सार्थक एवं आवश्यक होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। अतः शोध- समस्या बहुत विस्तृत एवं व्यापक (जैसे, अध्यापक शिक्षण की प्रभावित का अध्ययन ) न होकर उस विषय के कुछ आवश्यक एवं विशिष्ट पक्षों तक ही सीमित होनी चाहिए। साथ ही उसे इतना संक्षिप्त एवं संकुचित भी नहीं बनाना चाहिए कि वह उपहास मात्र बनकर रह जाए।
2. समस्या - संबंधी विभिन्न अंगों (elements) का स्पष्टीकरण एवं वर्णन करना - इसके अन्तर्गत शोधकर्ता समस्या की पृष्ठभूमि (background) का उल्लेख करता है, उसके सैद्धांतिक आधार (theoretical base) का वर्णन करता है तथा उन अवधारणाओं (assumptions) का भी स्पष्टीकरण करता है जो समस्या में सन्निहित होती हैं। साथ ही वह उन चारों तथ्यों, परिस्थितियों, व्यक्तियों आदि का भी उल्लेख करता है, जिनको समस्या से अग रखा जाना है। सामूहिक रूप से इन सभी पक्षों का स्पष्टीकरण एवं उल्लेख समस्या के परिभाषीकरण, विश्लेषण एवं वर्णन के अन्तर्गत आता है।
3. समस्या में प्रयुक्त शब्दों (Terms) एवं संकल्पनाओं (Concepts) के अर्थों को स्पष्ट करना तथा उन्हें परिभाषित करना - यह भी समस्या के परिभाषीकरण के अन्तर्गत ही आता है। यदि इनके अर्थ स्पष्ट नहीं किए जाते हैं तो समझना भी मुश्किल होगा कि समस्या है क्या। कुछ शब्द एवं संकल्पनाएँ ऐसी हो सकती हैं, जिनके अलग-अलग संदर्भों में अलग-अलग अर्थ होते हैं अथवा जिन्हें अलग-अलग लेखकों अथवा विशेषज्ञों ने अलग-अलग प्रकार से परिभाषित किया है। बुद्धि, प्रेरणा, मनोवैज्ञानिक आवश्यकता ( needs), व्यक्तित्व सन्तुलन (personality adjsutment), पर्यावरण (Climate) आदि अनेक ऐसी संकल्पनाएँ हैं, जिनके भिन्न-भिन्न अर्थ एवं परिभाषाएँ मिलती हैं। अतः शोधकर्त्ता को समस्या का परिभाषीकरण करते समय यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि उसकी समस्या में प्रयुक्त इन शब्दों एवं संकल्पनाओं को किस अर्थ में लिया गया है। ऐसा करने से उनका सही ढंग से मापन करना भी सरल हो जाता है। सामान्यतया इनको मूर्त एवं निश्चित व्यवहारों के रूप में परिभाषित किया जाता है। साहित्य में उन्हें किस-किस प्रकार से परिभाषित किया गया है, उन सबका उल्लेख करते हुए विशिष्ट रूप से यह बताना चाहिए कि प्रस्तावित अनुसन्धान-समस्या में उन्हें किस अर्थ में लिया गया है तथा उनका मापन किस प्रकार किया जाना है, कौन-कौन से तत्व, व्यवहार, परिस्थितियाँ, घटनाएँ उनके परिचायक (पदकपबंजवते) होंगे आदि। उदाहरण के लिए यदि छात्रों की "शैक्षिक उपलब्धि" एक चर है, तो यह स्पष्ट करना होगा कि उसका अर्थ छात्रों के परीक्षांक, अध्यापक द्वारा किए गए रेटिंग अथवा प्रमापीकृत निष्पत्ति- परीक्षाओं पर प्राप्त अंक आदि में से किस एक से हैं।
हिलवे (1964 पृ. 177 ) ने समस्या के परिभाषीकरण हेतु निम्न चार नियमों की ओर संकेत किया है -
(1) यह निश्चित करना कि समस्या का विषय-क्षेत्र न तो बहुत ज्यादा विस्तृत हो और न बहुत अधिक संकुचित।
(2) समस्या को विशिष्ट प्रश्नों के रूप में व्यक्त करना, जिसके निश्चित उत्तर सम्भव हों।
(3) समस्या का इस प्रकार सीमांकन करना कि जिन पक्षों एवं तत्वों का समस्या से संबंध नहीं है, वे स्पष्ट रूप से उससे अलग हो जाएँ।
(4) उन सब शब्दों को जो विशिष्ट हैं तथा जिनका प्रयोग समस्या में हुआ है; परिभाषित करना। उपरोक्त प्रकार से समस्या का विश्लेषण एवं परिभाषीकरण करने पर उसके प्रत्येक पक्ष का निश्चियन एवं स्पष्टीकरण हो जाता है। तब समस्या का कथन अथवा यों कहें कि उसे जो शीर्षक दिया गया है, उसका वास्तव में क्या अर्थ है, पूर्णतया सुनिश्चित एवं सिद्ध हो जाता है। साधारणतया समस्या कथन के बाद उसकी विस्तार से व्याख्या की जाती है। इसी को समस्या का परिभाषीकरण करना कहते हैं। इसी को प्रस्तावित अनुसन्धान परियोजना, सारांश रूप (synopsis) अथवा एजेण्डम (agendum) भी कहा जाता है, जिसे अनुसन्धान कार्य शुरू करने से पहले ही तैयार कर लिया जाता है।
इसके आवश्यक अंग निम्नलिखित हैं-
(1) समस्या कथन।
(2) समस्या का सैद्धांतिक आधार (theoretical framework)।
(3) समस्या का महत्व अथवा औचित्य।
(5) आधारभूत अवधारणाएँ।
(4) तकनीकी शब्दों की परिभाषाएँ।
(6) क्षेत्र का सीमांकन (delimitations)।
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- प्रश्न- अनुसंधान की अवधारणा एवं चरणों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- अनुसंधान के उद्देश्यों का वर्णन कीजिये तथा तथ्य व सिद्धान्त के सम्बन्धों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- शोध की प्रकृति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- शोध के अध्ययन-क्षेत्र का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- 'वैज्ञानिक पद्धति' क्या है? वैज्ञानिक पद्धति की विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरणों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अन्वेषणात्मक शोध अभिकल्प की व्याख्या करें।
- प्रश्न- अनुसन्धान कार्य की प्रस्तावित रूपरेखा से आप क्या समझती है? इसके विभिन्न सोपानों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शोध से क्या आशय है?
- प्रश्न- शोध की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- शोध के प्रमुख चरण बताइये।
- प्रश्न- शोध की मुख्य उपयोगितायें बताइये।
- प्रश्न- शोध के प्रेरक कारक कौन-से है?
- प्रश्न- शोध के लाभ बताइये।
- प्रश्न- अनुसंधान के सिद्धान्त का महत्व क्या है?
- प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति के आवश्यक तत्त्व क्या है?
- प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति का अर्थ लिखो।
- प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरण बताओ।
- प्रश्न- गृह विज्ञान से सम्बन्धित कोई दो ज्वलंत शोध विषय बताइये।
- प्रश्न- शोध को परिभाषित कीजिए तथा वैज्ञानिक शोध की कोई चार विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- गृह विज्ञान विषय से सम्बन्धित दो शोध विषय के कथन बनाइये।
- प्रश्न- एक अच्छे शोधकर्ता के अपेक्षित गुण बताइए।
- प्रश्न- शोध अभिकल्प का महत्व बताइये।
- प्रश्न- अनुसंधान अभिकल्प की विषय-वस्तु लिखिए।
- प्रश्न- अनुसंधान प्ररचना के चरण लिखो।
- प्रश्न- अनुसंधान प्ररचना के उद्देश्य क्या हैं?
- प्रश्न- प्रतिपादनात्मक अथवा अन्वेषणात्मक अनुसंधान प्ररचना से आप क्या समझते हो?
- प्रश्न- 'ऐतिहासिक उपागम' से आप क्या समझते हैं? इस उपागम (पद्धति) का प्रयोग कैसे तथा किन-किन चरणों के अन्तर्गत किया जाता है? इसके अन्तर्गत प्रयोग किए जाने वाले प्रमुख स्रोत भी बताइए।
- प्रश्न- वर्णात्मक शोध अभिकल्प की व्याख्या करें।
- प्रश्न- प्रयोगात्मक शोध अभिकल्प क्या है? इसके विविध प्रकार क्या हैं?
- प्रश्न- प्रयोगात्मक शोध का अर्थ, विशेषताएँ, गुण तथा सीमाएँ बताइए।
- प्रश्न- पद्धतिपरक अनुसंधान की परिभाषा दीजिए और इसके क्षेत्र को समझाइए।
- प्रश्न- क्षेत्र अनुसंधान से आप क्या समझते है। इसकी विशेषताओं को समझाइए।
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण का अर्थ व प्रकार बताइए। इसके गुण व दोषों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण से आप क्या समझते हैं? इसके प्रमुख प्रकार एवं विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक अनुसन्धान की गुणात्मक पद्धति का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- क्षेत्र-अध्ययन के गुण लिखो।
- प्रश्न- क्षेत्र-अध्ययन के दोष बताओ।
- प्रश्न- क्रियात्मक अनुसंधान के दोष बताओ।
- प्रश्न- क्षेत्र-अध्ययन और सर्वेक्षण अनुसंधान में अंतर बताओ।
- प्रश्न- पूर्व सर्वेक्षण क्या है?
- प्रश्न- परिमाणात्मक तथा गुणात्मक सर्वेक्षण का अर्थ लिखो।
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण का अर्थ बताकर इसकी कोई चार विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- सर्वेक्षण शोध की उपयोगिता बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण के विभिन्न दोषों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक अनुसंधान में वैज्ञानिक पद्धति कीक्या उपयोगिता है? सामाजिक अनुसंधान में वैज्ञानिक पद्धति की क्या उपयोगिता है?
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण के विभिन्न गुण बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण तथा सामाजिक अनुसंधान में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की क्या सीमाएँ हैं?
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की सामान्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की क्या उपयोगिता है?
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की विषय-सामग्री बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक अनुसंधान में तथ्यों के संकलन का महत्व समझाइये।
- प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण के प्रमुख चरणों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अनुसंधान समस्या से क्या तात्पर्य है? अनुसंधान समस्या के विभिन्न स्रोतक्या है?
- प्रश्न- शोध समस्या के चयन एवं प्रतिपादन में प्रमुख विचारणीय बातों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- समस्या का परिभाषीकरण कीजिए तथा समस्या के तत्वों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- समस्या का सीमांकन तथा मूल्यांकन कीजिए तथा समस्या के प्रकार बताइए।
- प्रश्न- समस्या के चुनाव का सिद्धान्त लिखिए। एक समस्या कथन लिखिए।
- प्रश्न- शोध समस्या की जाँच आप कैसे करेंगे?
- प्रश्न- अनुसंधान समस्या के प्रकार बताओ।
- प्रश्न- शोध समस्या किसे कहते हैं? शोध समस्या के कोई चार स्त्रोत बताइये।
- प्रश्न- उत्तम शोध समस्या की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- शोध समस्या और शोध प्रकरण में अंतर बताइए।
- प्रश्न- शैक्षिक शोध में प्रदत्तों के वर्गीकरण की उपयोगिता क्या है?
- प्रश्न- समस्या का अर्थ तथा समस्या के स्रोत बताइए?
- प्रश्न- शोधार्थियों को शोध करते समय किन कठिनाइयों का सामना पड़ता है? उनका निवारण कैसे किया जा सकता है?
- प्रश्न- समस्या की विशेषताएँ बताइए तथा समस्या के चुनाव के अधिनियम बताइए।
- प्रश्न- परिकल्पना की अवधारणा स्पष्ट कीजिये तथा एक अच्छी परिकल्पना की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- एक उत्तम शोध परिकल्पना की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- उप-कल्पना के परीक्षण में होने वाली त्रुटियों के बारे में उदाहरण सहित बताइए तथा इस त्रुटि से कैसे बचाव किया जा सकता है?
- प्रश्न- परिकल्पना या उपकल्पना से आप क्या समझते हैं? परिकल्पना कितने प्रकार की होती है।
- प्रश्न- उपकल्पना के स्रोत, उपयोगिता तथा कठिनाइयाँ बताइए।
- प्रश्न- उत्तम परिकल्पना की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- परिकल्पना से आप क्या समझते हैं? किसी शोध समस्या को चुनिये तथा उसके लिये पाँच परिकल्पनाएँ लिखिए।
- प्रश्न- उपकल्पना की परिभाषाएँ लिखो।
- प्रश्न- उपकल्पना के निर्माण की कठिनाइयाँ लिखो।
- प्रश्न- शून्य परिकल्पना से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
- प्रश्न- उपकल्पनाएँ कितनी प्रकार की होती हैं?
- प्रश्न- शैक्षिक शोध में न्यादर्श चयन का महत्त्व बताइये।
- प्रश्न- शोधकर्त्ता को परिकल्पना का निर्माण क्यों करना चाहिए।
- प्रश्न- शोध के उद्देश्य व परिकल्पना में क्या सम्बन्ध है?
- प्रश्न- महत्वशीलता स्तर या सार्थकता स्तर (Levels of Significance) को परिभाषित करते हुए इसका अर्थ बताइए?
- प्रश्न- शून्य परिकल्पना में विश्वास स्तर की भूमिका को समझाइए।